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नही मिलते




कहीं भी ढूंढने से हम-ज़बाँ नहीं मिलते,
मक़तलों में कभी हम-शबाँ नहीं मिलते।

जिनके बायस मिरा ज़िगर है चाक़ वही,
जहाँ भी ढूंढो मुझे वो कहीं बुतां नहीं मिलते।

हर एक शख़्स है नफ़रत में रवां दवां भी यहां,
गले भी मिलते है लेकिन दिलां नहीं मिलते।

बिछड़ भी जाये अगर कोई ज़िंदगी से यहाँ,
कितना ढूंढो उन्हें फिर अमाँ नहीं मिलते।

हालते-ए-हिज़्र में होती है वो क़ैफ़ियत 'तनहा',
लबे-गोयाई के लिए हर्फ़े-बयाँ नहीं मिलते।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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12 Comments

Chetna swrnkar

24-Aug-2022 12:51 PM

Nice

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Mithi . S

23-Aug-2022 01:56 PM

Nice

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shweta soni

23-Aug-2022 12:53 PM

Nice

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